Saturday, 30 July 2011

२४ जून २०११ को अभिजात हमारे जीवन में आया. मैं  उसे निहारता रहा और सोचता रहा कि फ़रिश्ते किस रंग के हुआ करते हैं? शायद गुलाबी. वो अब एक महीने का हो गया है पर रह रह कर मुझे गुलाबी फ़रिश्ता ही याद  आता है. 
जायज़ है. मौसम के साथ रंग भी बदलेगा, ढंग भी   
पर उस दोपहर, कुछ रूहानी सा था (या शायद खाली पेट कि गड़बड़ सोच)
वो मुझे फ़रिश्ता-नुमा ही दिखा,
और रंग? जी हाँ गुलाबी !!!


गुलाबी फ़रिश्ते 

मेरे गुलाबी फ़रिश्ते 
हरी पत्तियों सी चादर में लिपटे 
तुम्हे पहली बार देखकर
मैं मान गया था 
कि तुम विजेता हो

अपनी माँ की गर्म, आरामदायक 
कोख का सुख छोड़ कर 
आ गए थे सांसों कि लड़ाई लड़ने 
थोड़े नाराज़ कुनमुनाए से

तुम्हारा रुदन 
शंखनाद था जीवन का

पर बेटा जीवन कोई बच्चों का खेल नहीं 
जीना पड़ेगा इसका हर एक मौसम, 
गर्म हवा, कड़क जाड़ा और भीषण बरसात के थपेड़े 
हर एक रंग, हर एक राग


ये तो मैं हूँ जो इसको कई बार झेलकर 
कई बार जीत कर, कई बार हार कर 
अब सयानों सी बातें करता हूँ 

पर तुम?
तुमने तो अभी कुछ भी नहीं देखा

फिर भी 
माँ कि गोद में 
हलकी थपकियों के साथ
निश्चिन्तता से सोते हो,
कैसे? 
तुम विजेता ही तो हो 


मेरे गुलाबी फ़रिश्ते,
तुम्हे देखकर अब मुझे 
गर्म हवा, कड़क जाड़े और भीषण बरसात से डर नहीं लगता
तुम्हे देखकर अब मुझे 
हारने का डर नहीं लगता 

1 comment:

shobha said...

hey...........lovely...raungte khade ho gaye hain!!!