यह जो मेरे साथ
कुछ अनसुलझा सा चलता है
वो तुम ही हो
जो मुझे समझ नहीं आते
जमी हुई नदी की
पतली बर्फ की सतह पर
तुम्हे जानने के लिए
सावधानी से बढ़ता हूँ
और अचानक गुप! से गिर जाता हूँ
ठन्डे पानी में
फिर सतह पर आ जाता हूँ
पानी के मंथन में
हिचकोले खाता हुआ
किनारे को खोजता
लेकिन सतह पर तैरते रहने से
गहरायी की थाह तो नहीं मिलेगी
क्यों नहीं में डूबता चला जाता
जल तल में
समाधी में
सर के ऊपर जल और उसके भी ऊपर संसार
और तल में बैठा मैं
तुम्हे समझने के लिए शायद डूबना ही पड़ेगा
कुछ अनसुलझा सा चलता है
वो तुम ही हो
जो मुझे समझ नहीं आते
जमी हुई नदी की
पतली बर्फ की सतह पर
तुम्हे जानने के लिए
सावधानी से बढ़ता हूँ
और अचानक गुप! से गिर जाता हूँ
ठन्डे पानी में
वो डूबकी
जैसे रोम रोम में सुइयां चुभा देती है
और पल भर में कंपता मैं
किसी कार्क की तरह
फिर सतह पर आ जाता हूँ
पानी के मंथन में
हिचकोले खाता हुआ
किनारे को खोजता
लेकिन सतह पर तैरते रहने से
गहरायी की थाह तो नहीं मिलेगी
क्यों नहीं में डूबता चला जाता
जल तल में
समाधी में
सर के ऊपर जल और उसके भी ऊपर संसार
और तल में बैठा मैं
तुम्हे समझने के लिए शायद डूबना ही पड़ेगा
2 comments:
I can so much relate to the feeling portrayed here. Thanks for giving it the right words :)
Very deep thoughts :) and true...to know something completely, you will have to go into it completely.
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